Sunday 9 April 2017

चुनाव में दहशत का कारोबार !

धरती का स्वर्ग कश्मीर लोकतंत्र के महापर्व में बुरी तरह झुलस गया । श्रीनगर में 9 अप्रैल को लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव हुआ, लेकिन श्रीनगर में वोटिंग के अलावा वो सब कुछ हुआ, जिसके जद में पूरा कश्मीर सालों से लिपटा हुआ है । वोटिंग के दौरान पत्थरबाजी हुई, तोड़फोड़ की गई, फायरिंग हुई । सुरक्षा बल और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़प में 8 लोगों की मौत हो गयी, जबकि 36 लोग घायल हो गए । जिसमें निर्वाचन पदाधिकारी भी शामिल हैं । पोलिंग बूथ रणक्षेत्र में तब्दील हो गया ।

लगा ही नहीं कि श्रीनगर में चुनाव हो रहा है और वाकई जब चुनाव खत्म हुआ तो जो आंकड़े सामने आए वो हैरान करने वाला था । महज 6.5 फीसदी लोगों ने वोट किया । यानी श्रीनगर में चुनाव की आड़ में दहशत का कारोबार किया गया ।



30 सालों में सबसे कम मतदान
कश्मीर में चुनावी हिंसा की अब तक की यह सबसे बड़ी घटना है । ये मौतें तब हुईं, जब प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षा बलों ने मध्य कश्मीर के बडगाम जिले में गोलीबारी की । श्रीनगर लोकसभा सीट के लिए हुए मतदान में महज 6.5 प्रतिशत वोटिंग हुई । ये आंकड़े करीब 50 या 100 मतदान केंद्रों के या उनसे ज्यादा के हो सकते हैं । ऐसे में चुनाव आयोग के लिए भी मुश्किल है कि क्या महज 6.5 फीसदी वोटिंग के आधार पर किसी को श्रीनगर का प्रतिनिधित्व सौंपा जा सकता है । फिलहाल इस मसले पर भी चुनाव आयोग विचार करेगा ।

 
कैसे खाली हुई श्रीनगर लोकसभा सीट ?

श्रीनगर लोकसभा सीट पर उपचुनाव क्यों हुआ ? कैसे खाली हुई सीट ? सवाल का जवाब जब ढूढ़ेंगे तो पता चल जाएगा कि चुनाव में हिंसक झड़प होना तय था । दरअसल तारिक हामिद कारा ने अपने ही पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी पर जनविरोधी नीतियों को लागू करने का आरोप लगा कर नवंबर 2016 में लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और फरवरी 2017 में कांग्रेस में शामिल हो गए



कौन हैं तारिक हामिद कारा ?
तारिक हामिद कारा पीडीपी के संस्थापक सदस्य रह चुके हैं । कारा का जन्म 28 जून 1955 में हुआ था । कारा जम्मू कश्मीर के सबसे युवा वित्त मंत्री रह चुके हैं । कारा 2004 में श्रीनगर के बाटामालू सीट से पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे । इससे पहले 2003 में वह विधान परिषद् सदस्य चुने गए ।


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सबसे बड़ा सवाल, हिंसक क्यों हुआ चुनाव ?
जिस जनविरोधी का नारा बुलंद कर जम्मू-कश्मीर में अलगावादी खतरनाक राजनीति कर रहे हैं । उसी जनविरोधी नारा का सहारा लेकर तारिक हामिद कारा ने इस्तीफा दिया था । कश्मीर में भड़काव राजनीति का इतिहास रहा है । ऐसे में श्रीनगर उपचुनाव में अलगावादी, लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार थे । श्रीनगर में मौत का सैलाब और घायलों की तादाद इस बात की तस्दीक भी करती है ।


 

Friday 31 March 2017

चुनावी ब्रह्मास्त्र बनेगा मोबाइल

क्या भारत की राजनीति बदल गयी है ? क्या भारतीय राजनीति की तेवर बदल गयी है ? क्या भारतीय वोट बैंक का मिजाज बदल गया है ? क्या अब चुनावी जनसभाओं का दौर खत्म हो जाएगा ? ऐसे तमाम सवाल हो सकते हैं, क्योंकि पीएम नरेंद्र मोदी का मानना है कि 2019 में चुनाव मोबाइल पर लड़ा जाएगा । तो मोबाइल वाले चुनाव को समझना जरूरी है ।

मिजाज समझना जरूरी

राजनीति में बदलाव को समझना सबसे अहम होता है । वोटरों के मिजाज से लेकर मुद्दों की बुनियाद तक में बदलाव होता रहता है । गाहे-बगाहे हमारे देश में वोटरों के मिजाज को नजरअंदाज किया जाता रहा है । खासकर लोकसभा 2014 के चुनाव से पहले की बात करें तो ।

विश्व पटल की नजर से

याद कीजिए साल 2008 का अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव, जिसने इतिहास रचते हुए बराक ओबामा को चुना । बराक ओबामा उस वक्त के बदलाव को बखूबी समझते हुए फेसबुक को अपने चुनाव प्रचार का हथियार बनाया । फेसबुक पर बराक ओबामा का प्रयोग हिट रहा, वे अमेरिकियों के मिजाज को टटोलने में कामयाब हुए और फेसबुक चुनाव प्रचार का एक सशक्त साधन बन गया । एक वक्त तो ऐसा भी आया था, जब पाकिस्तान में ब्लॉग से राजनीतिक लामबंदी हुई थी । माना जाता है कि उस वक्त पाकिस्तान में हुए आंदोलन का असर ही था कि साल 2007 में परवेज मुसर्रफ तख्ता पटल करने में कामयाब रहे ।

भारत की राजनीति में नया मोड़

बात भारत की करें तो साल 2014 भारत की राजनीति में नया मोड़ लेकर आया । सूर्य की तरह बीजेपी का पूरे देश में उदय हुआ । राजनीति के नवोदित सूर्य की संज्ञा ''मोदी लहर'' दिया गया । ऐसे में दिल्ली विधानसभा और फिर बिहार विधानसभा में करारी हार ने फिर साबित किया कि लहर का असर तभी होता है, जब मिजाज को परखा जाए । यूपी-उत्तराखंड, मणिपुर विधानसभा 2017 के नतीजे शायद उसी का मिसाल है । जहां बीजेपी ने समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को सोचने तक का मौका नहीं दिया ।

लोकसभा चुनाव 2019 की तैयारी

 पूरे देश के क्षत्रप जहां हार की समीक्षा और मोदी लहर को चुनौती देने की रणनीति बनाने में जुटे हैं । पीएम नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव 2019 के लिए प्लान बना रहे हैं । पीएम और उनके सलाहकारों को लगता है कि 2019 सोशल साइड्स वाला होगा । मोबाइल सबसे महत्वपूर्ण होगा । लिजाहा पीएम ने विजय मंत्र देते हुए सभी सांसदों को सोशल साइड्स पर सक्रिय होने के लिए कहा है ।

मोबाइल पर चुनावी लड़ाई की पड़ताल

सोशल साइड्स पर विचारों और मान्यताओं का इको चैंबर बनता है। सोशल साइड्स ट्रैंडिंग के माध्यम से इको चैंबर का विस्तार करते हैं । आसान शब्दों में कहे तो आपके लाइक और हिट्स से इको चैंबर बनाया जाता है । ये सोशल साइड्स का भ्रामक विस्तार है । इससे निपटने की दिशा में फिलहाल कोई काम नहीं हुआ है । हां बढ़ावा देने में जरूर कई देशों ने इस्तेमाल किया है । जिसमें अब भारत भी जुड़ना चाहता है । क्योंकि विश्व के सबसे युवा देश में सोशल साइड्स स्वीट प्वाजन की तरह फैल रहा है । लाजिमी है राजनीतिक दल इसका फायदा लेना की जुगत जरूर लागएंगे । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऐलान इसी की एक कड़ी है । क्योंकि मिजाज समझना जरूरी है  ।


Monday 26 December 2016

#HANDSOME #CHAIWALA

Saturday 24 December 2016

अंत की परिभाषा

असमंजस की स्थिति सबसे आसान होती है
क्योंकि एक रास्ते का विकल्प जानना मुश्किल है
असमंजस सदैव दो रास्तों का विकल्प देता है
ठीक उस झूठ की सच्चाई की तरह
कि आदमी मिट्टी का है और मिट्टी ही शुद्ध है
भ्रांतियों की आयु निर्धारित नहीं
शोध भ्रांतियों का काल है
विजय और पराजय एक दपंत्ति हैं
जिसके कोख में हमेशा युद्ध गर्भ धारण करता है
अस्त की उष्मा आसमान की लहू है
पलायन की उस बेला की तरह, जिसमें मां-बेटे अलग होते हैं
गुजरना अनुभव करना होता है
और अंत की परिभाषा अनुभव है





Wednesday 2 November 2016

"रौशन" दो दीये

"रौशन"
दो दीये अरमानों के
उस शहर में जलाना तुम
जहां तुम्हारे एहसास
पल रहे हैं, बढ़ रहे हैं



ह्रदय की अभिलाशायें
दूर देश में रच-बस जाने से मिट जाती नहीं
तुम दीये की बाती को
मन की आंचल से बनाना
ताकि उसके लौ से
तुम खुद को रौशन कर सको


ये अलग बात है
कि मां की हाथों से गुत्थे हुए मिट्टी के वो दीये
उस शहर में नहीं मिलेंगे
लेकिन …
तुम उस पल को महसूस करना
उस मिट्टी की खूशबू में खोना
जिसमें प्यार, स्नेह, और विजय की ऊर्जा है

सपनों का आंगन सजाना तुम
जहां तुम्हारे अपने
तुम्हें दुलार रहे हैं
और तुम्हारी आंखें बिना लजाये
शरारतों की ऐसी रंगोली बना रही है
जिसमें तुम्हारे अपनों के
सारे रंग समाये हुए हैं


तुम चाहो तो...
उस छत पर भी दीये जलाना
जहां कबूतरों का
खुला आशियां होता है
जिसके लिए दिवाली का कोई मतलब नहीं होता
लेकिन रोशनी किसी की जागीर ना बने
इस भ्रम को तोड़ना तुम
दो दीये समानता के
उस शहर में जलाना तुम




मैं तुम्हें इस बात के लिए नहीं कचोट रहा हूं
कि दूर शहर में तुम अपनों से दूर हो
बल्कि
तुम कमजोर ना पड़ो
अपनी भावनाओं से लड़ते-लड़ते
इसलिए एकता के दीये जलाना तुम

Saturday 14 May 2016

लहू के दो राज्य:- Bihar-Jharkhand

मैं ना किस्मतकार था, ना दशहत का अवतार था, ना मैंने कभी किसी की निगहबानी ली, ना ही किसी की शोहबत में गुलामी की, मैं तो बस लोकतंत्र के माथे पर बिंदी की तरह चमकता एक गैर हिमायती, गैर रसूखदार कलमकार था । मैं कागज पर आग से कलम बोता था, लिखता था मैं दर्द जमाने के और खूद लिखने से पहले खूब रोता था, मैं ना अलंकार छंदों की भाषा बोलता-लिखता था, मुझको तो बस दर्द दिखाई देता था, मैं जनमानस के आक्रोश को शब्द संस्कार देता था, मैं एक कलमकार था । 

आज ना सिर्फ मेरी हत्या हुई है, बल्कि मेरे खून से लोकतंत्र को रक्तचत्रित कर दिया गया है, लेकिन मैं उन खूंखार नादानों को समझाने के लिए श्मशान से आह्वान दे रहा हूं कि मरा तो सिर्फ मेरा शरीर है, मेरी कलम की आग की लपटे तो और तेज हो गयी है । मेरे उस कलम से अब ज्वाला फूटेगा और भस्म कर देगा लोकतंत्र के दैत्य को, जो सियासी रहनुमायी पर खुद को आका समझ बैठे हैं । मेरी हत्या पर मैं खुद गोपालदास नीरज की कविता के माध्यम से सुशासन और अच्छे दिन वाले सरकार को संदेश देना चाहता हूं ।

मैं देख रहा हूं भूख उग रही है गलियों बाजारों में
मैं देख रहा हूं ढूढ रही बेकारी कफन मजारों में
मैं देख रहा हूं दूध उगलने वाली धरती प्यासी है
मैं देख रहा हर दरवाजे पर छाई मौत उदासी है
खुद मिट जाऊंगा या यह सब सामान बदलकर छोड़ूंगा
इंसान है क्या मैं दुनिया का भगवान बदलकर छोड़ूंगा
मैं अंगारे ही गाऊंगा जब तक दिनमान निकलेगा
आंधी खुद ही बन जाऊंगा जब तक तूफान निकलेगा
मैं यूं ही अपने शीश रहूंगा पहने ताज कफनवाला
जब तक मेरे शव पर चढ़कर मेरा बलिदान निकलेगा
मेरा है प्रण जब तक यह काली निशा नहीं उजियाली हो

तब तक रौशनी सकल जग को मेरे लहू की लाली हो
मैं नवयुग-निर्माता हूं रूढ़ी विधान बदल कर छोड़ूंगा
इंसान है क्या मैं दुनिया का भगवान बदलकर छोड़ूगा



मैं ना सिर्फ सीवान का राजदेव रंजन था, ना सिर्फ चतरा का इंद्रदेव यादव था । मैं तो सुशासन का प्रश्नकाल था, हूं और रहूंगाअच्छे दिनों पर सवाल था, हूं और रहूंगा